34/2023
[वसंत, शिशिर,ऋतु,बहार, परिवर्तन ]
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✍️ शब्दकार ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🍑 सब में एक 🍑
कवि -कवयित्री के लिए,बारह मास वसंत।
जर्जर मन करता सदा,कवि-जीवन का अंत।
नई चेतना ओज से, भर मन में उत्साह।
जाग्रत नवल वसंत हो,चल मानव सत राह।
शिशिर शीत अभिशप्त हैं,निर्धन खग तरु ढोर
बाट देखते रात की,कवि, व्यभिचारी, चोर।।
शिशिर-निशा में देखती,तिया पिया की राह।
सूनी-सूनी सेज है,उर में मिलन - उछाह।।
वेला शुभ ऋतु काल की,मन में उठे हिलोर।
सजन-मिलन की बाट में,देखे पथ की ओर।
ऋतु आई कलियाँ खिलीं,छाई नवल बहार।
है वसंत मनभावनी, खुलें चेतना - द्वार।।
लाल-लाल कोंपल नई,उगने लगीं अपार।
वन-उपवन में छा गई, पावन सुखद बहार।।
कूक-कूक कोकिल कहे,देखो नवल बहार।
तज प्रमाद आनंद लें,तन-मन बना उदार।।
परिवर्तन का नाम ही,है जीवन का खेल।
धूप -छाँव चलती रहे,हों सुख-दुख के मेल।।
नहीं तुम्हारे हाथ में,परिवर्तन का चक्र।
कभी सरल रेखा बने, कभी हो रहा वक्र।।
🍑 एक में सब 🍑
ऋतु वसंत या शिशिर के,
परिवर्तन का रूप।
देता सुखद बहार भी,
कभी गिराए कूप।।
🪴 शुभमस्तु!
18.01.2023◆6.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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