39/2023
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✍️ शब्दकार *
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
भव्य स्वर्ण-सा विहान,लागू हुआ संविधान,
बना देश ये महान, तथ्य सत्य जानिए।
देश स्वयं के अधीन, देखें नहीं मेख-मीन,
बनें आप में प्रवीण, डोर नहीं तानिए।।
याद रखें बलिदान, देश हित दिए प्राण,
करें नाम गुणगान, सु-वीर सम्मानिए।
'शुभं' देश गणतंत्र, एक ध्वज एक मंत्र,
व्यक्ति -व्यक्ति चल यंत्र,पूत प्रण ठानिए।।
-2-
लेश सोए नहीं नींद, खोल जागे निज दीद,
मरे नहीं वे शहीद, रक्त याद कीजिए।
त्याग दारा परिवार, झेल दुःख पारावार,
देश - दासता निवार, मीत सीख लीजिए।।
आए देश हित काम,नहीं जाना है आराम,
रात-दिन भोर-शाम, थोड़ा तो पसीजिए।
क्षय हो न गणतंत्र, मान एकता का मंत्र,
नर - नारी बन यंत्र, प्रेम -सुधा पीजिए।।
-3-
कोई समझे न ख़्वाब, देव तुल्य भीमराव,
देश- भूमि से सु-भाव, दिया संविधान है।
जाति-वर्ण भेद भूल,मात्र दृष्टि में उसूल,
बोए यहाँ-वहाँ फूल, कंचनी विहान है।।
प्राप्त सबको हो न्याय,नहीं शोषण अन्याय,
चैन मिले प्रति काय, भारत की शान है।
नहीं एक का था काम,दिया मिलके अंजाम,
झेल शीत ताप घाम,आज निज मान है।।
-4-
त्याग उर के विकार,करें न्याय का प्रसार,
माँगें तब अधिकार, देश गणतंत्र है।
करें पहले कर्तव्य, यह देश बने भव्य,
आग जला नित हव्य,सद भाव मंत्र है।।
छोड़ जाति वर्ण भेद, गात बहे तव स्वेद,
मात्र श्रम न्याय वेद, नारि- नर यंत्र है।
करें नहीं मनमानी, बनके मूढ़ अज्ञानी,
बना कर्म को निशानी, देश ये स्वतंत्र है।।
-5-
लिया हमने ये भाँप, छिपे बैठे गुप्त साँप,
रहा देश निज काँप, सर्प नाश कीजिए।
एक श्रेष्ठ संविधान, रहे सबको समान,
तने एक ही वितान, देश - रंग भीजिए।।
बनें नहीं भूमि -भार, लेना देश को उबार,
शत्रु करें क्षार - क्षार ,सूक्ष्म न पसीजिए ।
फूँक एकता का मंत्र, रखें देश को स्वतंत्र,
है अक्षुण्ण गणतंत्र, नेह- छोह दीजिए।।
🪴शुभमस्तु!
21.01.2023◆12.30पतन्म मार्तण्डस्य।
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