24/2023
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✍️ शब्दकार ©
📖 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अपने द्वारा
अपने लिए
बनाए गए
विधान की
पटरी पर
चलने में
उसे लाज आती है!
छोड़ देता है
सुंदर राजमार्ग,
और छुट्टा ढोरों की तरह
पगडंडियों से
पकी फसल पर
खेतों में
मारता है मुँह।
नहीं सीखा
आत्मानुशासन
आत्म अनुसंधान,
बस दूसरों के लिए
पाठ पढ़ाना सीखा,
और स्वयं
दूसरों का चारा
चट करता हुआ दीखा!
क्या ही
विभेद रहा
मानव और ढोर में?
एक नियम-विधायक
और चपल चोर में?
इधर -उधर
मुँह मारना
सम्भवतः
उसका स्वभाव है,
जहाँ मन हुआ
लगा देता
अपना दाँव है।
अपने राजमार्ग में
स्वयं गड्ढे खोदता है,
अपनी ही फसल
पैरों तले रौंदता है,
विचित्र है यह
मानव स्वभाव भी,
जहाँ रहता है
'शुभम्' सद्ज्ञान का
अभाव भी।
🪴शुभमस्तु!
13.01.2023◆2.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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