007/2023
[चाँदनी,स्वप्न,परीक्षा,विलगाव,मिलन]
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
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⛳ सब में एक ⛳
बिना चाँद के चाँदनी,बिना कंत के तीय।
देह बिना हिय के नहीं,युगलास्तित्व स्वकीय
खिली रूप की चाँदनी,मोहित चटुल चकोर।
प्रेम सुलोचन जो करे,नहीं जानता मोर।।
देखा था जो स्वप्न में,सुबह हुआ साकार।
खण्डकाव्य लिखता गया,बना उसे आधार।।
स्वप्न- लोक में घूमकर, देखा नव संसार।
नए काव्य के सृजन को,मिला सफल आधार
समय परीक्षा ले रहा,जान सके तो जान।
मिले सफलता ही सदा,कर मन से श्रमदान।
कठिन परीक्षा की घड़ी,कभी न करना भूल
धर धीरज बढ़ते रहें, ऊर्जा जुटा समूल।।
मिलन और विलगाव का,संचालित है खेल।
जीव संग परमात्मा, का भी अद्भुत मेल।।
कंत प्रिया के प्रेम में,मिलन और विलगाव।
रंग करें गाढ़ा सदा,गहराते उर - भाव।।
प्रेम - मिलन के मध्य में,रहे न तृण संदेह।
कंत -प्रिया के युग्म से,खिल उठता है गेह।।
पुलकमई घड़ियाँ मिलन,अश्रु भरा विलगाव
एक भरे रोमांच तन, एक उभारे घाव।।
⛳ एक में सब ⛳
मिलन - चाँदनी स्वप्न-सी,
तीव्र धूप विलगाव।
कठिन परीक्षा प्रेम की,
सुलगा प्रबल अलाव।।
🪴शुभमस्तु !
03.01.2023◆10.45
पतनम मार्तण्डस्य।
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