सोमवार, 2 जनवरी 2023

सत्कर्मों से संत बने नर 🪷 [ गीतिका ]

 003/2023


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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आजीवन        जलदान    किया    है।

कहलाती      फिर   भी   नदिया    है।।


फूले    -    फले      सदा   परहित   में,

महकाती      जग     को    बगिया    है।


सत्कर्मों         से       संत     बने   नर,

फटे      वसन    को   सदा  सिया    है।


ऊपर     रहे         हाथ      दाता    का,

नीचे      जिसने    हाथ    लिया      है।


अपना        उदर      श्वान  भी   भरते,

औरों     के   हित      सुजन जिया   है।


पाता       है        आनंद    अपरिमित ,

प्रेम  -  सुधा    जो      नित्य पिया   है।


'शुभम्'     सुमन     वाणी  में     झरते,

आजीवन       रहता     सुखिया       है।


🪴शुभमस्तु !

02.01.2023◆3.00

आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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