32/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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खिलते फूल महक फैलाते।
हम सबको वे पास बुलाते।।
गेंदा, गुडहल, पाटल , बेला।
कमल,कुंद, चंपा का मेला।।
जूही ,कुमुद ,केवड़ा भाते।
खिलते फूल महक फैलाते।।
मंदिर में देवों पर चढ़ते।
रण के पथ जब सैनिक बढ़ते।
नर - नारी की सेज सजाते।
खिलते फूल महक फैलाते।।
माला पुष्पगुच्छ में महकें।
वाणी बिना फूल ये चहकें।।
कक्ष सुगंधों से महकाते।
खिलते फूल महक फैलाते।।
हँस मुस्काकर जीना सीखें।
जब तक जीवें हँसमुख दीखें।
मानव को ये पाठ पढ़ाते।
खिलते फूल महक फैलाते।।
जीवन के नश्वरता वाची।
नहीं रहे वे नर से याची।।
जीने का संदेश जताते।
खिलते फूल महक फैलाते।।
🪴 शुभमस्तु!
17.01.2023◆5.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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