21/2023
[शीत,शरद,माघ,पूस,कुहासा]
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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☘️ सब में एक ☘️
शिशिर शीत संताप से,जीव जंतु बेहाल।
मानव भी पीड़ित बड़ा,बदल गई है चाल।।
थर-थर काँपे नारि-नर,चादर ओढ़े भोर।
शीत तुषारापात से,मौन छिपे खग मोर।।
शरद सुहानी आ गई,नाच उठे मन मोर।
विदा हुई पावस झड़ी, निर्मलता हर ओर।।
शरद देख खंजन चले,खिले काँस के फूल।
ऋतु बदली है पावनी,नहीं डगर में धूल।।
सघन कोहरे में यहाँ, आया शीतल माघ।
काँप रहे नर ढोर हैं,छिपे सौर में घाघ।।
माघ मास में उष्णता, कैसे हो भरपूर।
वसन गर्म आहार से, करते ठंडी दूर।।
छोटे दिन रातें बड़ी,मंद पूस की चाल।
ओढ़ रजाई बैठते, शीत रहा है साल।।
जिन्हें चाव संग्राम का,क्या सावन क्या पूस!
ध्वंस किया यूक्रेन को,मंद बुद्धि है रूस।।
सघन कुहासा छा गया, दिखे न चारों ओर।
लगता सूरज चादरें, ओढ़े लाया भोर।।
जड़ता बढ़ती जा रही, बढ़ा कुहासा - धूम।
दाँत कटाकट हैं बजे,रहा धरा नभ चूम।।
☘️ एक में सब ☘️
पूस माघ का शीत है,
शरद शिशिर की भोर।
सघन कुहासा ओढ़कर,
शीतलता चहुँ ओर।।
🪴शुभमस्तु !
11.01.2023◆7.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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