009/2023
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
📚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
शब्दकार की शुभद शब्दिता
करता उर साकार।
बीज भाव के कहाँ मिलेंगे,
है अभाव का कोष।
अलंकार, रस,शब्द - शक्तियाँ,
क्यों दिखलाते रोष??
ए टी एम चुराने वाले
टपकाते हैं लार।
मधुर व्यंजना के व्यंजन के,
लेते बाग उजाड़।
ज्यों वानर डाली पर उछले,
बना रहे तरु झाड़।।
रोक सकेगी बाड़ कहाँ तक,
बंद भवन के द्वार।
नवगीतों की उपमा बदली,
लय गतियों का तार।
पंकज पाटल नहीं महकते,
अरहर सरसों हार।।
लगा रहे हैं बाँग गली में,
हैं तमचूर उदार।
तालाबों में दादुर टर - टर,
तीतर बोले मेड़।
सी-सी की ध्वनि-लीन गा रहे,
घन फरास के पेड़।।
रंग बदलता खरबूजा फल,
बाँट रहा उपहार।।
🪴शुभमस्तु!
05.01.2023◆ 1.00 पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें