गुरुवार, 5 जनवरी 2023

मटमैला गाँव 🏕️ [ नवगीत ]

 008/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चादर में

सोया है

मटमैला गाँव।

सोहर से

आई है

शैशव की चाँव।।


अगियाने

सुलगाए 

बैठे हैं योग।

सेज सजी

दुलहे सँग

दुलहिन संयोग।।


शीतल है

धरती तल

ठहरे कब पाँव।


छूना मत

तन मेरा

सता  रही ठंड।

जाग रही

मधुशाला

बके अंड - बंड।।


साहस है

उसका जो

लगा दिया दाँव।


चूँ -चूँ की

शावक ध्वनि

गुंजायित छान।

लहराते

खेतों में

मदमाते धान।।


मुंडगेरी 

मुस्काती

कागा की काँव।


ओस लदी

पीपल दल

टपकीं बहु बूँद।

गाती क्यों

कोयलिया

चंचू ली मूँद।।


बरगद तल

बैठी है

लुका - छिपी छाँव।


🪴शुभमस्तु !


05.01.2023◆11.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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