14/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कर्मों की कविता करे,सगुण सरस कवि मीत
अलंकार सद्धर्म के, रचना बने पुनीत।।
शब्द - शक्ति संधान से ,करें साधना पूर्ण,
यति लय मृदुल प्रवाह से,सजता शुभ्र सुगीत
कोरे भाव उँड़ेलना,कविजन को निस्सार,
कभी न सच से दूर हो,कविता में भयभीत।
कवि कोई चारण नहीं,नहीं चरण का दास,
मक्खनबाजी जो करे, माटी करे पलीत।
राजनीति के रंग में, रँगते रचनाकार,
जन समाज को त्यागकर,चलते वे विपरीत।
व्यंग्य लिखें कविता करें,सृजन करें नव लेख,
भाव न चोरी कीजिए,उर हो सदा सतीत।
'शुभम्' लेखनी के नहीं,धनी हुए सब लोग,
कृपा शारदा मात की,करती काव्य प्रणीत।
🪴शुभमस्तु !
08.01.2023◆2.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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