29/2023
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✍️ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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देशप्रेम जिस उर को भाए।
उसने गीत प्रेम के गाए।।
स्वावलंब हो संबल सबका,
नहीं विपथ पर जन भरमाए।
फल के विटप लगाने वाला,
मृदु फल का आनंद मनाए।
पर- उपकारी सदा सुखी हैं,
नहीं किसी को कभी सताए।
सत चरित्र के हों नर- नारी,
देश न घर गर्तों में जाए।
मात - पिता की आज्ञाकारी,
संतति से क्यों जन उकताए?
'शुभम्' सुसंगति नित हितकारी,
जन - जन के उर में नर छाए।
🪴शुभमस्तु !
16.01.2023◆5.15आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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