शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

मँहगाई 💎 [ कुण्डलिया ]

 38/2023

        

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✍️ शब्दकार ©

💎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

छाई  फैशन ओढ़कर,ज्योँ पानी  पर   मैल।

मँहगाई  बैरिन  हुई,  रुद्ध प्रगति  की गैल।।

रुद्ध प्रगति  की गैल, बनी निर्धन की डायन।

नेता  कहते  ठीक,किए  जा  ये  ही  गायन।।

'शुभम्'  भरी  दुर्गंध, फैलती सर  पर  काई।

त्यों मँहगाई नित्य,आम जन-जन पर छाई।।


                         -2-

वेतन अब आधा हुआ, मँहगाई   का  काल।

एक ओर  है आयकर,उधर बिगड़ते  हाल।।

उधर बिगड़ते हाल,गुजारा बड़ा  कड़ा   है।

निवृत्ति वेतन  नित्य,निवाले का  झगड़ा है।।

'शुभम्'सुता का ब्याह,और सुत के भी बेधन

कैसे  हो   गृहकाज, अर्द्ध ही पाता   वेतन।।


                          -3-

नेता  रोटी   छोड़कर,   करते मेवा - भोग।

जनता  रोटी - दाल  का ,झेल रही  है रोग।।

झेल रही है रोग, लीद में मिलता  धनियाँ।

कल्लू बनता  काल,बड़ी गद्दी का  बनियाँ।।

'शुभम्' देख लें आज,सामने एक  न  लेता।

मँहगाई    का  अंड,  से  रहा ऊपर   नेता।।


                         -4-

जीना जनता को यहाँ, मरना भी  इस  देश।

वे  तो  उड़कर   यान  में, चाहें मरें   विदेश।।

चाहें  मरें   विदेश, बढ़ाकर नित    मँहगाई।

तेल  लकड़ियाँ   नौंन,जुटाना दुष्कर भाई।।

'शुभम्'  प्रदूषित   नीर, दूर  से लाकर  पीना।

कनक  नोट भंडार, सजा  नेता  को  जीना।।


                         -5-

किसमिस  काजू  वे चरें,  साथ  संतरा  सेव।

अपने  को  ऊपर बिठा, कहलाते  हैं   देव।।

कहलाते  हैं  देव, पुजा  पद लोग  -  लुगाई।

जनता का  सब माल,उसी को दे  मँहगाई।।

'शुभं'धन्य वह देश,जहाँ की जनता बेहिस।

नेता ही भगवान, चाभते काजू  किसमिस।।


🪴शुभमस्तु!


20.01.2023◆3.30 पतनम मार्तण्डस्य।

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