40/2023
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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज़ाद भारत के तिरंगे।
छत टैंक पे नचते तिरंगे।।
तीन दिन की बात थी बस,
आज तक सजते तिरंगे।
आजादियाँ मनमानियाँ हैं,
जड़ बने फिरते तिरंगे।
बात क्यों मानें विधानी,
तीर से चिरते तिरंगे।
क्या बताएँ आम जन को,
घास - सी चरते तिरंगे।
हाथ में आया खिलौना,
धूल में गिरते तिरंगे।
बर्दाश्त के बाहर 'शुभम्' ये,
देश के मरते तिरंगे।
🪴शुभमस्तु !
21.01.2023◆8.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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