गुरुवार, 19 जनवरी 2023

लोकतंत्र मनमानी 🇮🇳 [ नवगीत ]

 27/2023


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

लोकतंत्र

मनमानी

जीमें बड़हार।

अब तक हैं

फहराए

झंडे छत कार।।


संविधान

 सिर माथे

पाई है रसीद।

वक्त पड़े

काम आए

बहुत ही मुफीद।।


दे देते

मित्रों को

जैसे उपहार।


देशभक्ति 

वसनों में

बसती है मीत।

गाए जा

गाए जा

नारों - से गीत।।


बाला को

देखा तो

टपकी है लार।


देवोपम दिखलाता

टी वी पर रूप।

गुपचुप चर

काजू फल

बतलाता सूप।।


सुर्खी में

जगमग है

पूरा अखबार।


झंडा तो

फैशन है

विकृत मर्यादा।

लटकाए

कोई भी

डाकू या दादा।।


शक्ति नहीं

सोच नहीं

कभी मत उतार।


🪴शुभमस्तु !


14.01.2023◆8.30

पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...