सोमवार, 30 जनवरी 2023

दृश्य एक:दृष्टियाँ दो🗻 [ अतुकान्तिका ]

 48/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🗻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नीचे से 

ऊपर जाने वालों को

पहाड़ों की बर्फबारी में

स्वर्ग दिखाई देता है,

होटल के कमरे में

मेनका दिखाई देती है

अपनी वही पत्नी,

ऑफिस से लौटने पर

जिसकी शक्ल भी

सुहाती नहीं थी

तुलना में।


पूछो उन पहाड़ के

 वासिन्दों से,

जिनका जन्म ही

 हुआ वहाँ,

जीना मरना भी वहीं,

जिन्हें विसर्जन के लिए भी

सोचना पड़ता है,

कि जाएँ या 

टाल जाएँ,

पर जब 

हो लेते हैं बेवश,

तब पिघला कर

भगौने में 

जमी हुई बर्फ

हल्के हो लेते हैं,

कितनी बड़ी

विवशता है! 

प्रकृति की

यह कैसी विषमता है?


यही विषमता

नोटों की गर्मी में

दो चार दिन के लिए

स्वर्ग दिखाई देती है,

रहना पड़ जाए जो

उन्हें भी आजीवन

तो आटे- दाल का

भाव पता चल जाए!

फिर आज

दिखाई देते 

हुए स्वर्ग को

नरक ही बतलाएँ।


एक के जमे हुए

ठंडे आँसू 

उन्हें स्वर्ग के

दमकते मुक्ता सदृश

सुख में सुलांय,

दस-बीस वर्ष रहना हो

तो करने लगें

आँय - बाँय!

हाय! हाय!!


उनकी जगह

अपने को रख देखें!

स्वर्ग की ऊष्मा को

अनुभवें !

कुछ वर्षों के लिए

बर्फ में रहकर तपें,

यह और कुछ नहीं

दृष्टि- भेद है,

नहीं समझता आदमी

किसी और का दुःख

यही खेद है।


🪴 शुभमस्तु !


26.01.2023◆8.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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