मंगलवार, 10 जनवरी 2023

डालें पानी दूध में 🥛 [ कुंडलिया ]

 19/2023


■●■●■●■●■●■●■●■●■

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■●■●■●■●■●■●■●■●■●

                         -1-

डालें  पानी   दूध   में,  करते  जो   व्यापार।

निर्धन  वे   रहते   सदा,रहता घर   बीमार।।

रहता  घर   बीमार, रोग  की रहे   सवारी।

कभी भैंस को रोग,कभी उजड़ी घर क्यारी।।

'शुभम्' न मिलता चैन, धारणा  झूठी  पालें।

मिला  दूध  में नीर, छिपा चोरी   से  डालें।।


                         -2-

दोहन  भैंसों   से  करें, श्वेत दूध - सा   दूध।

पानी  में ही  काढ़ते,पालित पशु  का  ऊध।।

पालित पशु  का  ऊध, बेच पय धंधा करते।

नित्य  कमाते  पाप,नहीं  ईश्वर से    डरते।।

'शुभम्' सयानी नारि,भैंस पालक नर मोहन।

प्रति लीटर जल साठ,बेचते कर पय दोहन।।


                         -3-

पाली घर  में एक  भी, बकरी भैंस  न  गाय।

फिर भी बेचें दूध  वे,सुन मुख निकले हाय।।

सुन मुख निकले हाय, यूरिया तेल मिलाएँ।

कैमीकल भरपूर,मनुज को जहर पिलाएँ।।

'शुभम्' पाप का खेल,खेलता नर घरवाली।

गुप्त दुग्ध -व्यापार, नहीं मादा पशु पाली।।


                         -4-

देती  केवल  एक ही, दूध  भैंस  या  गाय।

ग्राहक नित बढ़ते रहे,जल ही मात्र उपाय।।

जल  ही  मात्र  उपाय, मिलाते जाएँ  पानी।

श्वेत  रहे   बस  दूध,  ढोर दूधों की   रानी।।

'शुभम्' दोहनी हाथ, मालकिन ज्यों ही लेती।

पानी  में  पय  काढ़,दोहनी वह  भर देती।।


                          -5-

पानी  में   यों   दूध  का,रँग दिखलाता  रंग।

केमीकल   गाढ़ा  करे,तेल वसा  का  संग।।

तेल  वसा  का  संग, भैंस क्यों  कोई  पाले।

गुप्त  कोठरी  बीच, ढंग से जहर  मिला ले।।

'शुभम्' नहीं ये पाप, बनी घर वाली  रानी।

करती नित सहयोग,मिलाए  जीभर  पानी।


🪴शुभमस्तु !


10.01.2023◆2.30 

पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...