शनिवार, 14 जनवरी 2023

आँसू 🫧 [ सोरठा ]

 23/2023

        

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✍️ शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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निकले दृग की कोर,द्रवित हुए उर-भाव जो।

तनिक न करते शोर, आँसू बन बहने लगे।।


हुआ हृदय में शोक,जननी ने जब ली विदा।

नहीं सका मैं रोक,अविरत आँसू  बह  रहे।।


बनकर आँसू धार,पिता गए सुरलोक को।

दुखी  हुआ  परिवार, नयनों से  मेरे  बहे।।


उर को देता शोक,कठिन बहुत है बोझ ये।

चुभती तीखी नोक,बन आँसू बहता वही।।


दृग से  आँसू धार,  नहीं मात्र दुख  में   बहें।

हैं सुख का उपहार,अति सुख में भी वे कहें।


रासायनिक गुण तत्त्व,सुख केआँसू के इतर।

अलग सदा अस्तित्व, दुख के आँसू भिन्न हैं।


होम  दिए हैं  प्राण,देश - सुरक्षा  के लिए।

करते  हैं जो त्राण,अश्रु बहाते हम  सभी।।


बहते बन जल-बिंदु,हैं प्रतीक उर भाव के।

अंबर में ज्यों इंदु, मानव कहता  अश्रु ये।।


आई    ऐसी   बाढ़, आँसू  नारी  के    बहे।

रिश्ते  नसे  प्रगाढ़,महल  किले राजा  मिटे।।


उद्धव  अति  बेचैन, अश्रु गोपियों  के  बहे।

त्यों तड़पे दिन रैन,जल बिन तड़पे मीन ज्यों


 जाती  है   ससुराल, पीहर से बेटी    विदा।

आँसू - बिंदु विशाल,जननी के रुकते नहीं।।


🪴शुभमस्तु !


🪴12.01.2023◆12.30 पतनम मार्तण्डस्य।


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