596/2024
छंद विधान:
1.मंदारमाला सवैया में सात तगण [(221×7) + गुरु (2)का विधान है।
-1-
ज्ञानेश्वरी वंदना मैं करूँ,
काव्य का भारती गूढ़ भंडार हो।
वागेश्वरी मंजु वीणा बजे,
भाव की शुद्धता का मुझे सार हो।।
संगीत के संग हों छंद भी,
कंठ में भी सुरीली नई धार हो।
गाता रहूँ गीत माँ शारदे,
राह पाऊँ सभी मात आचार हो।।
-2-
वामा कभी चंचला तो कभी,
कोमला कर्कशा क्या कहें बोलिए।
पाषाण भी फूल - सी माधुरी,
लाजहीना कभी क्या कहें तोलिए।।
आती लजाती हुई मुस्कराती हुई,
बोल बोलें कहें खोलिए।
शृंगार को जो सजाती सदा,
संग देती हुई खोलिए।।
-3-
राजा करे घात बोलो किसे ,
यों कहें काम तेरा बुरा बोल रे।
देता सजा क्यों बताता नहीं,
क्यों नहीं क्यों नहीं क्यों नहीं तोल रे।।
राजा वही है भला देश का,
जो सु- पाले सदा गंध ही घोल रे।
खेला करे खेल की गोटियाँ,
राज के भेद नाहीं न जो खोल रे।।
-4-
आजा यहाँ श्याम वंशी बजा,
याद तेरी करें गाय भी गोपियाँ।
राधा मिलीं राह में श्याम से,
कीर पाले खड़ीं राह में गोपियाँ।।
कान्हा रटें बेल -पौधे सभी,
मोर आए सभी चाह में गोपियाँ।
दामा सखा सोचता क्या सखा का भला,
झूम आने लगीं राह में गोपियाँ।।
-5-
माना यहाँ हो बड़े प्यार में क्यों,
पड़े प्यार की रीति भी जानिए।
ठाना करेंगे वही मानते भी नहीं,
यार की प्रीति भी मानिए।।
दाना चुगेंगे नहीं खूब रीझो नहीं,
बान जो प्यार की यार जी त्यागिए।
चाहा मिला ही किसे जान लो,
ज्ञान की बात भी आज ही जानिए।।
शुभमस्तु !
31.12.2024●11.45 प०मा०
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