604/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
त्रेता युग में विप्र था,दसमुख जिसका नाम।
ज्ञानवान शिवभक्त भी,धरती पर था नाम।।
धरती पर था नाम, कर्म कुछ उसका ऐसा।
नीति धर्म प्रतिकूल,न करता मानव वैसा।।
'शुभम्' हुआ बदनाम,जदपि वह धर्म प्रणेता।
हरी राम की सीय, बना दानव युग त्रेता।।
-2-
खोटे मानव कर्म हों, होता पतन अवश्य।
जैसे दसमुख विप्र का,हुआ नाम अस्पृश्य।।
हुआ नाम अस्पृश्य, नहीं रखते जन रावण।
मानवता के नाम,हुआ हो ज्यों कोई व्रण।।
'शुभम्' लिया हठ ठान,जले स्वर्णिम परकोटे।
उचित यही है तथ्य,कर्म क्यों करना खोटे।।
-3-
विजयादशमी पर्व की, पावन है यह रीत।
दसमुख तमस प्रतीक है,राम विजय की प्रीत।।
राम विजय की प्रीत, युगों से चलती आई।
दसकंधर का नाश, सदा को हुई विदाई।।
'शुभम्' धरा से एक,शुभद कन्या जो जनमी।
हरण हुआ वनवास, मुक्ति में विजयादशमी।।
-4-
माता जिसकी कैकसी, एक दानवी नाम।
पिता विश्रवा एक ऋषि,हुआ पुत्र बदनाम।।
हुआ पुत्र बदनाम, हरण कर सीता लाया।
अहंकार में चूर, क्रूर दसमुख कहलाया।।
'शुभम्' कर्म फल व्यक्ति,इसी जीवन में पाता।
हों यदि पिता सुशील, भद्र भी होवे माता।।
-5-
दसमुख एक प्रतीक है,अहंकार का नाम।
रावण दानव एक था, श्रीलंका में धाम।।
श्रीलंका में धाम, भक्ति शिवजी की करता।
अहंकार में लीन, कर्म से जीता -मरता।।
'शुभम्' सदा मतिमंद,किया करते उलटा रुख।
दुष्कर्मों का बंध, बना रावण वह दसमुख।।
शुभमस्तु !
02.10.2025● 10.30 प०मा०
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