201/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
करिए आदर अतिथि का, आ जाए जो द्वार।
अतिथि देव सम पूज्य है, रहना सदा उदार।।
रहना सदा उदार, भोज पानी सब देना।
आया है किस काज, जान वाणी से लेना।।
'शुभम्' न विष को घोल,कष्ट उसके सब हरिए।
दे आदर सत्कार,अतिथि का स्वागत करिए।।
-2-
जनता से नेता सभी, चाह रहे हैं मान।
कदम-कदम आदर मिले, भले न टूटी छान।।
भले न टूटी छान, न जनता किंचित भाए।
झूठे करे बखान, झूठ आश्वासन लाए।।
'शुभम्' जोड़ता हाथ, दिखाकर आँखें तनता।
कड़वा लगता क्वाथ,चूसता भूखी जनता।।
-3-
सबका आदर कीजिए, करे नहीं अपमान।
मात -पिता गुरुजन सभी,पूज्य अपरिमित शान।।
पूज्य अपरिमित शान, बड़े - छोटे हों कोई।
एक सभी की चाह, भले चम्मच बटलोई।।
'शुभम्' गया जब मान, महाभारत आ धमका।
इसीलिए धर ध्यान,करें हम आदर सबका।।
-4-
करता आदर अन्य का, पाता है वह मान।
श्वान -पुत्र पहचानता, मानुष प्रेम निधान।।
मानुष प्रेम निधान, पाँव को पुनि- पुनि चाटे।
भले ऐंठ लो कान, नहीं कण भर भी काटे।।
'शुभम्' प्रेम विश्वास,श्वान का कभी न मरता।
आजीवन रह पास, गृही का आदर करता।।
-5-
भूखे आदर के सभी, निर्धन और अमीर।
स्वाभिमान सबका बड़ा,इससे सभी अधीर।।
इससे सभी अधीर, तनिक अपमान न झेलें।
उड़ते सरिस समीर, बड़ी विपदा भी ले लें।।
'शुभम्' न कर व्यवहार,कभी मानुष से रूखे।
खुले मान का द्वार, सभी हैं इसके भूखे।।
शुभमस्तु !
10.04.2025●8.00 प०मा०
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