गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

अन्याय के पर्याय हैं! [ नवगीत ]

 654/2025


    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पूर्वाग्रहों से

ग्रसित जन

अन्याय के पर्याय हैं।


व्यक्ति की 

छवि को

विकृत करना जिन्हें है

अग्रणी 

जो चल सके

वही भरना  उन्हें  है

धारणा में

धूल धूसरता

कुपित अध्याय है।


मारते

दीवाल में

जो सींग हैं

शून्य में

लंबी 

लगाते पींग हैं

और कहते हैं

स्वयं को

वे दूध देती  गाय हैं।


हाथियों की

गैल को 

जो रोकता  है

मस्तमौला 

चाल को

जो टोकता है

टूट जाती

थूथनी

करते नहीं जो न्याय हैं।


शुभमस्तु !


28.10.2025● 11.00 आ०मा०

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