650/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बैलगाड़ी का
जमाना
अब नहीं है।
चक्र
चरितों का
चपल गति से चला है
नित्य
नैतिक अर्क
तेजी से ढला है
लालसा
धन की बढ़ी
रम ही बही है।
बैंक वैभव
सब डिजीटल
हो गया है
आज
रिश्तों का समंदर
सो गया है
धर्म के नारे
लगे
क्या धर्म भी है?
खोखले भाषण
सभी
उपदेश झूठे
नियम या
कानून भी
सब भग्न रूठे
वक्ष में
इंसान के
क्या मर्म भी है?
शुभमस्तु !
27.10.2025●1.30 प०मा०
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