सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

रीति सनातन भंग न हो [ सजल ]

 648/2025


         

समांत        : अटे

पदांत         : अपदांत

मात्राभार     : 14.

मात्रा पतन   :शून्य.


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 मनस      कभी        तेरा     उचटे।

रहे       केंद्र     पर     नित्य    डटे।।


बढ़े    परस्पर      प्रिय       संवाद।

मेल      एकता    से    न        हटे।।


रीति        सनातन   भंग     न   हो।

उचित  नहीं      मनुजात        बटे।।


कर्म      प्रधान       रहे       जीवन।

रहें      मनुज  से     मनुज     सटे।।


मन      में  हो      संकल्प     प्रबल।

रहें       जगत      में      छटे - छटे।।


एक        रहें        कथनी -  करनी।

पल    भर    को  मन    नहीं  घटे।।


'शुभम्'  अहं     से    जो     है   दूर।

मानवता        से       नहीं      कटे।।


शुभमस्तु !


27.10.2025●7.15 आ०मा०

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