गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

मुझे भाता नहीं है [ नवगीत ]

 655/2025


         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लीक पर चलना

मुझे भाता नहीं है।


धार के ही

साथ 

मुर्दे  बहा करते

प्राण जिनमें

चीर धारा 

कर सँभलते

चेतना का

बोध जिसमें

लोरियाँ गाता नहीं है।


स्वयं घोषित

सूर्य को 

मैंने न माना

यों सितारों को

सभी 

मैं  खूब जाना

आकाश है

विस्तृत बड़ा 

मगर ताता नहीं है।


अस्मिता को

 तुम चुनौती

दे रहे हो

और निज

पतवार किश्ती

खे रहो हो

पर 'शुभम्'

अपने सुपथ 

गंतव्य निज पाता यहीं है।


शुभमस्तु !


28.10.2025●11.30 आ०मा०

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