652/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब फटाफट में
मगन हैं
वक्त किसके पास है!
ब्रेन में
कम्प्यूटरों की
फिट हुई हैं कुंजियाँ
ब्रेन तो
ठंडा पड़ा है
टनटनाती पंजियाँ
आदमी है
दास एकल
ब्रेन खाता घास है।
मारकर झट टंगड़ी
निकलूँ
सभी से अग्र मैं
और पिएं
छाछ पानी
दिव्य घृत का अर्क मैं
नीति झोंकी
भाड़ में सब
अर्थ से हर आस है।
पत्नी नहीं
पति की रखे पत
अय्याश से अय्याशियाँ
सुत-सुता को
चाहिए बस
अर्थ से शाबाशियाँ
देह से
आए पसीना
उसको नहीं अब रास है।
शुभमस्तु !
27.10.2025●3.00प०मा०
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