657/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
धनिकों की हर चीज
हमें लगती है मँहगी
ज्यों चाँदी-सोना।
खाते या कि
पहनते होंगे
पता नहीं
दीवारों में
चुनवाते हों
वे लुका कहीं
आम आदमी
को सपना है
उसका होना।
भाव खा रहे
ऊँचे-ऊँचे
क्या बतलाएँ
तोला भर
लाखों से ऊपर
हमें सताएँ
समझ न पाएँ
दुल्हनिया का
रोना -धोना।
नारी- हठ के
नहीं सामने
कोई टिकता
उसे चाहिए
केवल सोना
नहीं न सिकता
तभी पड़ेंगीं
सात भवरियाँ
होगा गौना।
शुभमस्तु !
30.10.2025 ● 11.45 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें