गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

ज्यों चाँदी-सोना [ नवगीत ]

 657/2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


धनिकों की हर चीज

हमें लगती है मँहगी

ज्यों चाँदी-सोना।


खाते या कि

पहनते  होंगे

पता नहीं

दीवारों में

चुनवाते हों

वे लुका कहीं

आम आदमी

को सपना है

उसका होना।


भाव खा रहे

ऊँचे-ऊँचे

क्या  बतलाएँ

तोला भर

लाखों से ऊपर

हमें सताएँ

समझ न पाएँ

दुल्हनिया का

रोना -धोना।


नारी- हठ के

नहीं सामने

कोई टिकता

उसे चाहिए 

केवल सोना

नहीं न सिकता

तभी पड़ेंगीं

सात भवरियाँ

होगा  गौना।


शुभमस्तु !


30.10.2025 ● 11.45 आ०मा०

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