गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

चुँधियाता सोना हमें रहा है [ नवगीत ]

 658/2025


 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


युग- युग से

चुँधियाता 

सोना हमें रहा है।


मरते दम तक

साँपों ने

है स्वर्ण सहेजा

मिथ्या गाड़

प्रतिष्ठा का ध्वज

 रहा तनेजा

अंध बुद्धि के

चपल करों ने

जिसे गहा है।


कितने आए

चले गए

रहा रोना का रोना

ला न सका

मुस्कान

कभी

यह पीला  सोना

जिसने भी

पाया सोना

वह सदा दहा है।


साँपों से 

भयभीत मनुज

पर डरा न सोना

अशुभ हुआ

मानव को

उसका पाना-खोना

प्रतिमा गहनों

ईंटों से चुन

स्वर्ण लहा है।


शुभमस्तु !


30.10.2025●12.15 प०मा०

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