651/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पढ़ते थे
किताबें प्रेम से
वे जन विदा क्यों हो गए?
आदमी का
आलसीपन
नित्य ही बढ़ता गया
वह डिजीटल
के लिए
मरु शृंग पर चढ़ता गया
व्यक्ति श्रम से
यों निरंतर
श्रम जुदा हो सो गए !
कौन
जिम्मेदार है
अब सत्य कहने के लिए
गूगली
हर बात सच है
अब तथ्य चुनने के लिए
धूल खातीं
पोथियाँ हैं
जो मित्र थे सब खो गए।
हो सकें बच्चे
अगर पैदा
डिजीटल ही करो
क्यों
फिजीकल की फ़िकर में
रात अब काली करो
कुंजीपटल की
कुंजियों से
ब्रेन सबके धो गए।
शुभमस्तु !
27.10.2025●2.15 प०मा०
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