सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

मनस कभी तेरा उचटे [ गीतिका ]

 649/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 मनस      कभी        तेरा     उचटे।

रहे       केंद्र     पर     नित्य    डटे।।


बढ़े    परस्पर      प्रिय       संवाद,

मेल      एकता    से    न        हटे।


रीति        सनातन   भंग     न   हो,

उचित  नहीं      मनुजात        बटे।


कर्म      प्रधान       रहे       जीवन,

रहें      मनुज  से     मनुज     सटे।


मन      में  हो      संकल्प     प्रबल,

रहें       जगत      में      छटे - छटे।


एक        रहें        कथनी -  करनी,

पल    भर    को  मन    नहीं  घटे।


'शुभम्'  अहं     से    जो     है   दूर,

मानवता        से       नहीं      कटे।


शुभमस्तु !


27.10.2025●7.15 आ०मा०

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