649/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मनस कभी तेरा उचटे।
रहे केंद्र पर नित्य डटे।।
बढ़े परस्पर प्रिय संवाद,
मेल एकता से न हटे।
रीति सनातन भंग न हो,
उचित नहीं मनुजात बटे।
कर्म प्रधान रहे जीवन,
रहें मनुज से मनुज सटे।
मन में हो संकल्प प्रबल,
रहें जगत में छटे - छटे।
एक रहें कथनी - करनी,
पल भर को मन नहीं घटे।
'शुभम्' अहं से जो है दूर,
मानवता से नहीं कटे।
शुभमस्तु !
27.10.2025●7.15 आ०मा०
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