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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रोटी का आकार है,ज्यों पूनम शशि गोल।
परित :इसके घूमता,जग रोटी अनमोल।
जग रोटी अनमोल,सुबह से संध्या होती।
खाली हो जब पेट, शांति से कैसे सोती?
'शुभम' करे नित काम,मिले पतली या मोटी।
जीवन का आधार,सभी को वांछित रोटी।1।
रोटी में षटरस भरे, अलग नहीं संज्ञान।
खट्टा मीठा चरपरा, लवण कसैला ध्यान।।
लवण कसैला ध्यान,न कटु का स्वाद बताए।
मिले अलौनी रोज़, सलौनी हो हो जाए।।
'शुभम' जीभ का स्वाद,पाद से ऊपर चोटी।
भरे उदर की सोच स्वादपूरित हो रोटी।2।
रोटी की शुभ आस में,छोड़ सकल घर द्वार।
मानव भटके रात दिन,चुभें चरण में खार।
चुभें चरण में खार, मान मर्यादा छोड़े।
पत्नी निज संतान,मोह से नर मुख मोड़े।।
'शुभम' बड़ा मजबूर,मिली है किस्मत खोटी।
बुझे पेट की आग, अगर मिल जाए रोटी।3।
रोटी क्यों मिलती नहीं, गेहूँ भरा अपार।
गोदामों में सड़ रहा,बहा बाढ़ की धार।।
बहा बाढ़ की धार , बहुत बर्बादी होती।
सोती भूखे पेट ,सड़क पर जनता रोती।।
भटका है मजदूर,व्यवस्था है सब खोटी।
पीठ पेट हैं एक, नहीं जब सूखी रोटी।4।
रोटी का दाता कृषक, मरता अन्न अभाव।
आटा नहीं परात में, तवा खा रहा ताव।
तवा खा रहा ताव, रो रहा चूल्हा प्यारा।
चकले का संवाद, उधर बेलन से न्यारा।।
चिमटा है चुपचाप,मिले पतली या मोटी।
गेहूँ मक्का ज्वार,'शुभम' कैसी भी रोटी।5।
रोटी का क्या मोल है, जाने भूखा मान।
उत्पादन जो कर रहा,सबसे श्रेष्ठ किसान।
सबसे श्रेष्ठ किसान, बेचता है जो रोटी।
काट रहा जो पेट, छीनता छोटी मोटी।
'शुभम' उन्हें क्या बोध,चूसते हड्डी बोटी।
मानव का है प्राण, सदा से केवल रोटी।6।
रोटी काली खा रहे, जिनके मोटे पेट।
मुँह से दाना छीनते, कर मानव आखेट।।
कर मानव आखेट,तड़पती भूखी जनता।
लेता नहीं डकार,और भी ऊँचा तनता।।
'शुभम' भूख का नाम, भले छोटी या मोटी।
मिटे उदर की भूख,जगत में होती रोटी।7।
💐 शुभमस्तु !
02.06.2020 ◆11.30 पूर्वाह्न।
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