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✍ शब्दकार©
🎇 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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जो अचल
अटल है
स्थान पर अपने,
आकाश का
एक नक्षत्र
ध्रुव है।
आकाश अनन्त
अचल पर्वत
स्वस्थान पर स्थित
वह सब
ध्रुव है।
परब्रह्म
अपरिवर्तनीय
नित्य और
शाश्वत सत्य
सभी ध्रुव हैं।
श्री विष्णु
जगतपालक पिता
भगवतत्त्व है
जिसका अपरिमित
ध्रुव सत्य है।
धरा के
दो छोर
नुकीले अच्युत
उत्तरी और
दक्षिणी ध्रुव हैं।
चुम्बक में
स्थित
विपरीत दो छोर
उत्तरी दक्षिणी
कभी नहीं
मिलते परस्पर
अटल अचल
ध्रुव दोनों।
ध्रुव की ध्रुवता
अटलता
अचलता
पावनता
अपरिवर्तनशीलता
उसकी सच्चरित्रता
अनुशीलनीय है,
सुनीति उत्तानपाद
सुत के सदृश
जिसे ध्रुव
कहता है
सम्पूर्ण जगत।
अपने कर्म से
धर्म से
मर्म से
बनें हम ध्रुववत,
आचरण की
पावन शरण,
नहीं मात्र
दो चरण
करना है
'शुभम' प्रतिक्षण
उसका वरण।
💐 शुभमस्तु!
25.06.2020◆1.30 अप.
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