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✍शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्दों की
अनगढ़ माटी
भावों के
निर्मल जल में
सुरुचि ने माढ़ी
गाढ़ी -गाढ़ी,
बुद्धि की लेखनी
कर में थाम
अविराम
न सुबह न शाम।
स्याही
कल्पना की
डुबोकर
कैनवस पर
बनाने लगा
शब्दचित्र
कलमकार
रचनाकार
शब्दकार
कवि शायर
लेखक
साहित्यकार।
इहलोक में बैठा
परलोक में
उड्डयन विचरण
कलमकार की
लेखनी के चरण।
परमानंद
ब्रह्मानंद सहोदर
लेखनीकार का सृजन,
कहते जिसे
सहित्य सृजन।
कलमकार है
एक कलासाधक
असहनीय है उसे
हर एक बाधा
और बाधक,
एकांत साधना का
संसाधक,
आराधक
माँ सरस्वती का,
ज्ञान की अधिष्ठात्री
वाणी प्रदात्री।
बिना माँ की
कृपा
फूटते नहीं हैं
प्रथम बोल,
इसलिए अब,
जब भी
मुँह खोल
तोल कर बोल।
ब्रह्मा का सृजन
अखिल सृष्टि
सकल चराचर
ब्रह्मांड,
कवि -ब्रह्मा का
सृजन
काव्य की सृष्टि,
यथा दृष्टि
तथा सृष्टि।
भाग्य है
यह मानव योनि,
पर सौभाग्य है
सुकवि कलमकार,
सत्यं शिवम सुंदरम का
बोधक ,संबोधक
अहित रोधक,
हित साधक
कलमकार
कवि रचयिता।
तपस्या है
लेखन कविता
मानव के मध्य
उज्ज्वल सविता,
प्रणाम नमन
वंदन है ,
आदि कलमकार
वाल्मीकि को,
जिनकी
करुणा दृष्टि से
जन्मी
कविता रूपी
रामायण ,
दिव्य सृष्टि।
ध्यान रहे
तुमको 'शुभम'
अपनी छवि का,
तू मानस सुत है
माँ सरस्वती का।
💐 शुभमस्तु !
0️⃣9️⃣0️⃣6️⃣2️⃣
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