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विधान: 111 212 111 122
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विमल शारदे सुमधुर वाणी।
सकल दायिनी तुम कल्याणी।
'शुभम'याचना कर कर ध्याऊँ
भजन मात का निशिदिन गाऊँ।
चरण आपके सुत यह तेरा।
पलक झाँपते कटत अँधेरा।।
करत साधना सुतवर तेरी।
'शुभम'वंदना विमल घनेरी।।
दरस भावना सुत अनुरागी।
भगति साधना अति बड़भागी
विमल वासना सजधज आवें।
सबद साधना 'शुभम'करावें।।
अटल साँच से विमुख न होऊँ
कवित धार मैं सुखद संजोऊँ।
सुहृद कामना अगजग बोऊँ,
'शुभम'शारदा सत सुत होऊँ।
अमर कौन है इस जग माता।
करम मानवी सुखद विधाता।
'शुभम'आशिशी नर वह होता
सबद बीज जो रचकर बोता।।
💐 शुभमस्तु !
20.06.2020 ◆11.55पूर्वाह्न।
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