◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
चमक पसीने की फ़बी,
श्रम की बनी प्रतीक।
सृजन - बिंदु की चारुता ,
शुभ हितकारी नीक।।1।।
श्रमज स्वेद सिकता चमक,
देती सत परिणाम।
करे 'शुभम' सौ -सौ नमन,
श्रम को नित्य प्रणाम।।2।।
चमक चाँदनी की चमक,
चमके चारों ओर।
मेरे मन को मोहती,
मतवाली चितचोर।।3।।
पावन पावस आ गई,
चमके तड़ित अबाध।
गड़ - गड़ गरजे वारिधर,
बरसा जल निर्बाध।।4।।
प्राची में रवि का उदय,
हुई भुवन में भोर।
चमक करों की सोहती,
अंतरिक्ष के छोर।।5।।
चमक तुम्हारे रूप की,
देख हुआ मन तृप्त।
मैं चकोर तुम चाँद हो,
मत करना संतप्त।।6।।
परछाईं सर में पड़ी,
मुख देखे रवि नीर।
चमक लगी मेरे नयन ,
गया सरोवर तीर।।7।।
चमक रही हिंदी सबल,
उज्ज्वल भव्य भविष्य।
कलमकार जागें सभी,
अर्पित करें हविष्य।।8।।
कटि कंधे में जब लगे ,
चमक तुम्हारे मीत।
ध्यान सदा उसमें रहे ,
भूल सुरीले गीत।।9।।
सोना चाँदी की चमक ,
मदमाती नर नारि।
बाल न जाए साथ में,
रखते बहुत सँभारि।।10।।
जब दर्पण पर धूल हो,
धूमिल मुख - प्रति छाँव।
चमक दिखे जब रज हटे ,
दिखे शीश से पाँव।।11।।
चमक कीर्ति की विश्व में,
छाए 'शुभम ' अपार।
मात शारदे के चरण ,
मम जीवन के सार।।12।।
धन वैभव की चमक का ,
देह - स्वेद आधार ।
जो प्रमाद में सो रहा ,
उसे मिलेगी हार।।13।।
आभूषण की चमक से ,
चमके नहीं चरित्र।
'शुभम' चरित नर नारि में,
महकाता है इत्र।।14।।
इतने भी चमको नहीं ,
सभी जानते राज।
भेद खुलेगा जिस घड़ी,
उतरेगा तव ताज।।15।।
💐 शुभमस्तु !
08.06.2020 ◆9.15पूर्वाह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें