★★★★★★★★★★★★★★★
✍ शब्दकार ©
💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★★★★★
सुर्ख गालों पे फ़बी लुनाई है।
दिल को भाई तो क्या बुराई है?
सुर्ख अधरों का एक बोसा लूँ,
गुल से लाली अगर चुराई है।
झील - सी आँखें डुबा डालेंगी,
जिस्म - जाँ को मेरी बधाई है।
फुरसती लम्हों में गढ़ा रब ने,
क्या अदा है जो मन को भाई है!
बोल ऐसे कि कूकता कोकिल,
श्याम गेसू नहीं अमराई है।
तेरा साया पड़े जहाँ कहीं यारा,
ग़म की हो जाये बस विदाई है।
करिश्मा- ए -कुदरत खुशहाल रहे,
बहिश्त- ए - हूर 'शुभम' आई है।
01.06.2020 ◆1.30अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें