शुक्रवार, 5 जून 2020

ये देखो पौधारोपण [ कुण्डलिया ]


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✍ शब्दकार ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पौधा     रोपा  एक ही ,  फोटो खींचे  चार।
नेताजी  मुस्का  रहे, देखो  तो अखबार।।
देखो  तो अख़बार, हाथ  में पौधा   थामे।
चमचा गड्ढा खोद,मिलाए उनकी हाँ में।।
'शुभम' सींचता पौध,पहन चेला चमरौधा।
हुई   शुद्ध  जलवायु,  रेत  में रोपा  पौधा।।

पौधे  रोपे  चार ही ,  लिखते चार  हज़ार।।
 जिंदा हैं या मर गए,लिखें नहीं अखबार।।
लिखें     नहीं अख़बार ,न पानी देने लौटे।
पहन बगबगे वेश, लगाकर मस्त मुखौटे।।
'शुभम'  चर गई भैंस,गिरा पौधा मुख औंधे।
रौंद   गई   है   कार,   लगाए हमने   पौधे।।

पादप रोपण हो गया, गिने पाँच सौ एक।
मुड़कर फिर देखा नहीं,काम बड़ा ये नेक।
काम बड़ा ये नेक,  नाम भी खूब   कमाया।
फ़ोटो के  भी साथ, न्यूज़  पूरा छपवाया।।
शुभम न देखा शीत, नहीं क्या मारा आतप।
नहीं  लगाई   बाड़, धूप   में झुलसा  पादप।।

दिखता  है  वैसा  नहीं,  पौधों का संसार।
दिखावटी अपरूप हैं,मानव को यह भार।।
मानव   को  यह भार,नाम नामे की माया।
एक  लगाकर पौध, न्यूज़  में सौ  छपवाया।।
शुभम रकमअनुदान,गाड़ दी तपती सिकता।
 बिना नयन के लोग, नहीं घोटाला दिखता।

मानव  से आशा नहीं, करता पूरा   स्वार्थ।
कुंती सुत से कह रहे , श्रीकृष्ण, सुन पार्थ।
श्रीकृष्ण, सुन पार्थ, देख ले दिन  में नाटक ।
मानव कितना मूढ़ , चाहिए उसको हाटक।।
'शुभम' लगाता एक, काटता सौ -सौ दानव।
कैसे  हो बरसात ,पेड़   का दुश्मन  मानव।।

💐 शुभमस्तु !

05.06.2020 ◆10.15 पूर्वाह्न।।

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