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✍ शब्दकार©
🙊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपनों को देते गलहार।
गैरों को देते दुतकार।।
तेरे मेरे का है खेल,
अपनों की खेते पतवार।।
गर्द सियासत की भरपूर,
सिर गर्दन रेते तलवार।।
जातिवाद का देखा रंग,
दुनिया के जेते अख़बार।
मुँह उघाड़ कर सौंप रहे,
बाँट रहे केते उपहार।
न्याय नहीं , चिल्लाते लोग,
नहीं ध्यान ,लेते दो '-चार।।
दूध धुले वे बने हुए ,
'शुभम' नहीं चेते संसार।।
💐 शुभमस्तु!
27.06.2020 ◆11.15पूर्वाह्न
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