शुक्रवार, 19 जून 2020

चाल [ दोहा ]


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✍  शब्दकार©
🐟 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मदमाती तव चाल पर,देता है उर ताल।
कहने से   रुकता नहीं,   ऐसा है बेहाल।।

शकुनि चाल में फँस गए,सब पांडव रणधीर।
पासे  फेंके  छद्म  के ,उड़ा द्रौपदी  चीर।।

चाल एकरस जो चले,पाते वे गंतव्य।
विपदा मेंभी धीरधर,करते वे कर्तव्य।।

अश्व खरीदें यदि कभी,पहले देखें चाल।
चाल न कोई दे सके,देखें प्रथम सँभाल।

मधुशाला से चल दिया,एक पियक्कड़ लाल।
डगमग डगमग कर रहा, सहज नहीं है चाल।

यश पाया जग में बड़ा,कछु आ जी की चाल
जो अबाध चलता रहा, विजयश्री गलमाल।।

पिछवाड़े में एक घर, कुछ जन की है चाल।
पता नहीं वे  कौन हैं, कैसा घर  का हाल!

चींटी चढ़ी पहाड़ पर,मंद मंद मधु चाल।
गिरती फिर उठती पुनः,लेती स्वयं सँभाल।

साँझ हुई रवि अस्त है,नहीं पखेरू चाल।
वन में  सन्नाटा  बढ़ा, पंछी नीड़ निढाल।

शंख बजा जब कूच का,पड़ी छावनी चाल।
कंधे फड़के वीर के,चमके मुखड़े भाल।

आते ही बारात के युवती नारी चाल।
दर्पण के आगे सजीं,चमकाएं भ्रू गाल।

इंजन के पुर्जे सभी,करते अपना काम।
अपनी 2 चाल से,अनथक बिना विराम।।

कोरोना के काल में,दफ्तर की हर चाल।
मंद मंद है भोथरी,कोरोना भौकाल।।

नई चाल के वसन हैं, नई चाल के बाल।
नई चाल के लोग भी,लोटा थाली थाल।।

चाल बदल समझा उसे, कौशल से बदलाव।
जीवन में होता सकल,निर्मल विशद प्रभाव।

चाल समझते चीन की,भारत वासी खूब।
हम ऐसी माटी नहीं,जमे न तेरी दूब।।

सीधा -सादा आदमी,फँसा ठगों की चाल।
मूर्ख बनाकर ले उड़े,उसका सारा माल।।

तज साड़ी की चाल को,कुर्ता औ'सलवार।
अपनाती हैं नारियाँ,बदली रूप बहार।।

एक चाल में जिंदगी,उसकी बीते आज।
मजदूरी से पेट भर,रहता जो मुंहताज।।

चाल देखकर नारि की,गया पुरुष का धीर।
ज्यों घूँघट मुख से उड़ा,रही न उर की पीर।।

चाल चाल में भेद है,चाल चाल भूचाल।
चालाकी भी चाल है,गति धोखा भी चाल।।
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1.चलना,2.धोखा,3.गति, 4.गति , धोखा।5.गति,6.गति
7.आहट,8.गति,9.आहट,10. हलचल,11.चहल- पहल,12. कार्यप्रणाली,13.तत्परता,14.ढब,15.युक्ति,16.चालाकी,17.
धोखा,18.फैशन ,प्रचलन।
19.घर ,20.गति,21.विविध अर्थ।
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💐 शुभमस्तु !

16.06.2020◆3.30 अप.

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