शुक्रवार, 26 जून 2020

हूँ [ चौपाई ]

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✍ शब्दकार ©
🦁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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'हूँ'    की   सारी  सदा लड़ाई।
लड़ें     पड़ौसी   भाई -भाई।।

'हूँ'  में   अहंकार   की  कारा।
जो विनाश का कारण सारा।।

चीन देश निज 'हूँ' का अंधा।
छोटी  आँखें    छोटा कंधा।।

'हूँ'  'हूँ'  करता नहीं  बोलता।
पत्ते  अपने नहीं    खोलता।।

मेरी  'हूँ'  ने    मुझको  मारा।
निर्मल नहीं  भाव की धारा।।

'हूँ'  का   पर्दा  बुद्धि  चढ़ा है।
अज्ञानी   है   भले    पढ़ा है!!

'हूँ'  है 'हाँ' भी विस्मय भी है।
बहुरूपी  'हूँ'  शब्द  सही है।।

'हूँ '  का  जग में खेल पसारा।
'हूँ'  की  बू में  छीजत  सारा।।

स्वीकृति  वाची भी है 'हूँ'  'हूँ'।
मधुर  कूकता कोकिल कूहूँ।।

दादी    कहती   बाल कहानी।
'हूँ' कह बच्चों को जतलानी।।

जब तक'हूँ'की ध्वनिआती है।
दादी तब तक कह पाती है।।

जब  बालक  की 'हूँ' न सुनाए।
बंद  कहानी    कर सो जाए।।

प्रश्नोत्तर    का   हर   हुंकारा।
'हूँ' लगता   है सबसे प्यारा।।

वर्तमान   'है'  का  उत्तम 'हूँ'।
एक वचन कहलाता है   हूँ।।

'हूँ'  कि यदि दीवार गिराओ।
'शुभम'उजासा उर में पाओ।।

नर - नारी   की यही कहानी।
चटनी 'हूँ' की सबको खानी।।

💐 शुभमस्तु !

24.06.2020◆1.00अप.


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