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✍ शब्दकार ©
🐥 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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उन्मुक्त
गगन में
उड़ते हुए पंक्षी
निश्चिंतता के
प्रतीक।
गमन
करता जो
'ख' में वह
कहलाता है
खग।
नीड़
अपना बनाया,
जोड़ा तिनका -तिनका
परिवार बसाते
पंक्षी।
जीवन
जीना अभावग्रस्त
कोई सीखे इन
पंक्षियों से
सहज।
वास्तुशिल्पी
बया -सा
कहीं देखा है!
घोंसला सुडौल
सुंदर।
भोर
होते ही
चहचहा उठे पंक्षी
गौरैया मयूर
कोकिल।
घोंसला
बनाते नहीं
कहीं भी कोई
मयूर पंक्षी
अपना।
अंडे
कौवे के
पोष रही कोयल,
अनजान है
बेचारी।
खोखले
पेड़ के
तने के अंदर
कठफोड़वा का
घर।
हंस
चुगते मुक्ता
भक्षण नहीं करते
कंकड़ पत्थर
कभी।
आज
कमा लें
खा गा लें
कल का
क्या ?
साम्राज्य
सुशांति का
पंक्षी जगत में
प्रेरणा ले
मानव।
भोली
गौरैया ने
रखा है नीड़
घर में
मेरे।
पर्यावरण
सुधारक गिद्ध
गए कहाँ सब,
चिन्तनीय है
यह!!
रखें
दाना पानी
हम सभी जन
करें खग
रक्षा।
04.06.2020 ◆ 6.40 पूर्वाह्न।
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