शुक्रवार, 26 जून 2020

कलश [ गीत ]

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार©
🏪 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन             आए      द्वार।
झोली भर -भर  फूल बिखेरो
लाओ      सहज       सँवार।।

कब  के  चले आए कब पहुँचे
थके       राह       के      मारे।
भूखे  -  प्यासे  चलते -  चलते 
आए       हैं       पग     हारे।।
शीतल जल से आवभगत कर
अर्पित        कर       उपहार।
मंगल -कलश सजाओ सजनी
पाहुन          आए       द्वार।।

आम्रपत्र     की       वन्दनवारें
कलश,    कलावा ,      डोरी।
नारिकेल  नव सज्जित ऊपर,
अक्षत     दल    औ'     रोरी।।
आरति   सजा  थाल में महके
धूप ,     अगरु     औ'     हार।
मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन            आए      द्वार।।

फल,मेवा,  मिष्ठान्न   सजाओ
बेला,    लाल  गुलाब   सुमन।
उर की कली -कली महकाए
हो    जाएं  वे   सहज प्रमन।।
गुँजा  गीत  की वाणी सुमधुर
वीणा       संग          सितार।
मंगल -कलश सजाओ सजनी
पाहुन      आए           द्वार।।

अपनी   छवि का लोभ हमें है
कमी     न        रहने     पाए।
मन में शिकवा और शिकायत
शेष     नहीं     रह      जाए।।
भूलें     नहीं    हमारी    सेवा ,
करें        'शुभम'      विस्तार।
मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन        आए          द्वार।।

💐 शुभमस्तु !

23.06.2020◆6.45 अपराह्न।

☘️🌷☘️🌷☘️🌷☘️🌷☘️

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...