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✍ शब्दकार©
🏪 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन आए द्वार।
झोली भर -भर फूल बिखेरो
लाओ सहज सँवार।।
कब के चले आए कब पहुँचे
थके राह के मारे।
भूखे - प्यासे चलते - चलते
आए हैं पग हारे।।
शीतल जल से आवभगत कर
अर्पित कर उपहार।
मंगल -कलश सजाओ सजनी
पाहुन आए द्वार।।
आम्रपत्र की वन्दनवारें
कलश, कलावा , डोरी।
नारिकेल नव सज्जित ऊपर,
अक्षत दल औ' रोरी।।
आरति सजा थाल में महके
धूप , अगरु औ' हार।
मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन आए द्वार।।
फल,मेवा, मिष्ठान्न सजाओ
बेला, लाल गुलाब सुमन।
उर की कली -कली महकाए
हो जाएं वे सहज प्रमन।।
गुँजा गीत की वाणी सुमधुर
वीणा संग सितार।
मंगल -कलश सजाओ सजनी
पाहुन आए द्वार।।
अपनी छवि का लोभ हमें है
कमी न रहने पाए।
मन में शिकवा और शिकायत
शेष नहीं रह जाए।।
भूलें नहीं हमारी सेवा ,
करें 'शुभम' विस्तार।
मंगल-कलश सजाओ सजनी
पाहुन आए द्वार।।
💐 शुभमस्तु !
23.06.2020◆6.45 अपराह्न।
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