सोमवार, 29 जून 2020

अहंकार [ दोहा ]


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✍ शब्दकार©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अहंकार जो भी करे,होता नष्ट समूल।
धन विद्या या शक्ति का,उगते राह बबूल।।

रावण शिव का भक्तथा, लेकिन बना कुपात्र
काल अहं ऐसा बना,शक्ति नाभिगत मात्र।

अहं रहित मानव अगर,होता देव समान।
मान और अपमान का,नहीं हृदय में भान।।

यौवन मद में चूर हो,भूला सबका मान।
बुरे कर्म में लिप्त नर, दिखलाता है शान।।

अहंकार के वश सभी,डाकू चोर लबार।
दर्प-अश्व पर बैठकर,रहते सदा सवार।।

यौवन मद में झूमती,कामिनि छोड़े बान।
नैनों के शर छोड़ती,ताने देह कमान।।

मद में अंधा कंस भी, भूला बुध्दि विवेक।
दिखती उसको मीच ही तजे काम सब नेक।

तू क्या ऐंठे देह पर, होनी है जो राख।
चार दिनों की चाँदनी,फिर अँधियारा पाख।।

मैं मैं मैं करता रहा,तू को दिया बिसार।
मैं को तज तू को भजे, होकर ईश निसार।।

अहंकार जब टूटता,कुछ भी रहे न शेष।
चिड़ियाँ चुगती खेत जब,नोंचे अपने केश।।

'शुभम'उचित है नम्रता, त्याग दंभ अभिमान।
अहंकार जिसने किया,बचते नाक न कान।।

💐 शुभमस्तु !

29.06.2020 ◆10.45पूर्वाह्न।

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