रविवार, 14 जून 2020

हुंकार [ गीत ]


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✍ शब्दकार 
🏹 डॉ. भगवत स्वरूप *'शुभम'
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हुंकार से फुंकार से काँपा गगन।
होगा दमन !   होगा दमन!!

ये    चीन   की   टेढ़ी  नज़र,
बजने   लगा  अपना  बज़र,
पर्वत शिखर   का हर शजर,
गाने     लगा   हुंकार   भर,
होगा शमन !   होगा शमन!!
होगा  दमन !   होगा दमन!!

हम    वीर    हैं  सोते  नहीं,
भयग्रस्त    हो   रोते   नहीं,
हम    शल्य  भी बोते नहीं,
हुंकार      ऐसी    है  प्रखर,
तू   लौट जा  पीछे , न मर!
होगा  दमन   ! होगा दमन!!

जो   आँख    तू   टेढ़ी  करे,
हम  फोड़     दें   अंधी करें,
कटु   लाल   मिर्ची भी भरें,
हम   चाहते   दुश्मन    टरे,
क्यों    बढ़ रही है ये तपन?
होगा  दमन! होगा  दमन!!

हम      छेड़ते    पहले  नहीं,
फिर  छोड़ते   भी  हम नहीं,
छिप जाएगा  बिल  में कहीं,
अब आँख मत मिचका यहीं,
क्यों  काँपता  है  शीश तन!
होगा  दमन!  होगा दमन !!

सुन    बुद्ध    का   ये  देश है,
बुद्धत्व    का    तू   क्लेश है ,
खाना    जो   मुँह की शेष है,
हर    छद्म   तेरा     वेष    है,
पग पीछे  हटा  होगा शमन!
होगा दमन !   होगा  दमन!!

💐 शुभमस्तु !

11.06.2020 ◆6.15 अप.

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