मंगलवार, 30 जून 2020

पावस [ कुण्डलिया ]


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✍ शब्दकार©
⛈️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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                       -1-
बादल नभ में छा गए,आया सावन मास।
मुखड़े खिले किसान के,बँधी मेघ से आस।।
बँधी मेघ से आस, बूँद झरझर के बरसीं
तृप्त उरों की प्यास,नैन की छबियाँ हरसीं।
पावस आया मीत,मेघ के छाए हैं दल।
'शुभम'धरा को आस,बँधाते भूरे बादल।।

                        -2-
झर झर बरसे मेघ दल, हरसे सरसे जीव।
पशु पंछी मानव सभी, कोयल कूके पीव।।
कोयल कूके  पीव, लता  पौधे लहराते।
पीपल शीशम नीम,गगन बा दल गहराते।।
पावस आया झूम,काँवड़ी गाते  हर - हर।
'शुभम'बरसते मेघ,भिगोते शोभन झर झर।।

                          -3-
प्यासी धरती को मिला,जब पावस का नीर।
हरे-हरे अंकुर उगे,हरित धरा का चीर।।
हरित धरा का चीर,फ़सल धानी लहराई।
बादल ने नित झूम,धरा की तृषा बुझाई।।
परिजन करते नाच, कृषक की गई उदासी।
शुभमअन्न फल शाक,दे रही धरती प्यासी।

                         -4-
नाली  नाले  भर गए,भरे खेत खलिहान।
पावस बरसा झूमकर,करता जल का दान।।
करता जल का दान,गली छत बहा पनारा।
सड़कें  गलियाँ डूब,बही पानी की  धारा।।
बालक नंग  धड़ंग, नाचते दे- दे ताली।
'शुभम'नहाते खूब,भले गिर जाते नाली।।

                        -5-
बरसा बादल अवनि पर,भरता सरिता ताल।
मोर नाचते बाग में,सारस करें कमाल।।
सारस करें कमाल, टर्र टर बोलें दादुर।।
बगला उड़ते खेत,सुनाते वे अपने सुर।।
वीरबहूटी लाल, देख मन मेरा हरसा।
पावस 'शुभम' महान,धरा पर बादल बरसा।।

💐 शुभमस्तु !

30.06.2020.10.45 पूर्वाह्न।

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