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✍ शब्दकार©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ऋतु वसंत की है मतवाली।
कोयल कूके डाली -डाली।।
कुहू - कुहू की मीठी बोली।
मादक मधुर-मधुर रसगोली।।
कंठ रसीला तन की काली।
ऋतु वसंत की है मतवाली।।
अमराई में पड़ते झूले।
बहना भाभी कूदे ऊले।।
हम सब बजा रहे कर ताली।
ऋतु वसंत की है मतवाली।।
तितली फूल -फूल पर जाती।
रस पीने को वह मँडराती।।
भौरों की गुन -गुन गुंजा ली।
ऋतु वसंत की है मतवाली।।
आग लपट- से टेसू फूले।
गेंदा सरसों में अलि भूले।।
पतझड़ करता पादप खाली।
ऋतु वसंत की है मतवाली।।
माटी की सुगंध मत भूलें।
नई हवा में थोड़ा झूलें।।
होली रँग से खूब मना ली।
ऋतु वसंत की है मतवाली।।
💐 शुभमस्तु!
22.06.2020◆7.15 अप.
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