रविवार, 14 जून 2020

गंदगी [ दोहा ]


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✍ शब्दकार©
✳️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जहाँ गंदगी वास है, वहाँ न प्रभु का वास।
स्वस्थनहीं जीवन वहाँ,सहज न आए रास।

सदा अपावन  ठौर है,जहाँ गंदगी  राज।
वायु धरा जल शुद्धि में,जीवन का सुखसाज।

राजनीति यदि स्वच्छ हो , नहीं रहेगा राज।
जितनी बढ़ती गंदगी,उतना चमके ताज।।

हर  देवालय गेह की, करें मलिनता  दूर।
जहाँ वास हो ईश का,शांति मिले भरपूर।।

गंदा ही भोजन करें, गंदे शौक स्वभाव।
रहें गंदगी में मनुज, उनका बुरा प्रभाव।।

भरा प्रदूषण शीश में,बाहर रोपें पेड़।
दूर नहीं उर गंदगी,मार देश की रेड़।।

जाति-भेद की गंदगी, नेताओं की देन।
जनमत उनको चाहिए, बेपटरी हो ट्रेन।।

फूलों की माला गले, महक रहीं दो चार।
भीतर कचरा गंदगी,तन में भरा अपार।।

धूप अगरबत्ती जलीं, महक उठा दरबार।
दान-अहं की गंदगी,मन में भरी अपार।।

राष्ट्र -एकता के लिए, स्वच्छ न हो यदि नीत।
फिर गुलाम क्यों हो नहीं, भरी गंदगी प्रीत।।

भेड़ मानकर चल रहे , जनता को ये लोग।
सभी जानते गंदगी, फिर भी बनते भोग।।

💐 शुभमस्तु !

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