✍ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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हे वासुदेव! हे करूणा पति!!
अणु- अणु में व्याप्त पतित पावन।
निर्गुण! निर्लेप! निरंजन! विभु!
निष्कल! अनंत ! कर पावन मन।।
परमेश्वर! परानंद! अव्यय!
षडविंशक ! महाविष्णु !अक्षय!
हे नित्य ! अपार ! अनित्य!सत्य!
उर में हो अमल भाव निर्भय।।
सर्वज्ञ! सर्व! सर्वस्य पूज्य!
वेदान्तवेद्य! नित्योदित! हरि!
जगदाश्रय !तम से परे!हंस!
फँस रही नाव प्रभु जाए तरि।
मायापति!योगपति!जगपति!
पुरुषोत्तम!कालातीत ! पूर्ण!
हे उदासीन! प्रणव! तुरीय!
अविनाशी ! कर अज्ञान चूर्ण।।
हे कपिल!ब्रह्मविद्याश्रय!शिव!
हे हृषिकेश !हे संकर्षण!
दुष्प्राप्य !चरणरज लेने की,
टूटें बाधा जल जाएँ व्रण।।
दुर्ज्ञेय! विश्वमोहन! अक्षर!
प्रद्युम्न! दुरासद! मूलप्रकृति!
स्तुत्य! विश्वअम्भर! चक्री!
योगेश्वर!तीर्थपाद!तपनिधि!!
कूटस्थ! काल! आनंद! विष्णु!
कैवल्य पति! असुरान्तक!नर!
हे पुरुष ! श्रीपति ! नित्य श्री!
भगवत मस्तक हो तव पदतल।।
पीताम्बर! जगतपिता !ईश्वर!
जगत्राता! जगन्नाथ ! माधव!!
देवादिदेव! गोविंद! दिव्य!
हे आदिदेव!कर निर्मलभव ।।
हे राम! कृष्ण! हे क्रोधेश्वर!
हे एकवीर! क्षितिपिता! वृषभ!
हे भीम!जगतगुरु!वरद!अनघ!
भगवान!घोर! कविइंद्र!सुखद!
गुरु! वह्नि ! एकपत्नीश!वाद!
नृप! मेरु !मात! औ' पिता!चेत!
हे अन्न!सुदर्शन!! भगवत पति,
हो जाऊँ बलि तव चरण हेत।।
💐 शुभमस्तु !
14जुलाई 1972 ई.
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