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✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।
चिल्ला रहे हैं सब मनुज,
धरती अपावन है तेरी।।
धधकती हैं भट्टियाँ,
कारें धुआँ नित छोड़तीं।
शव , गंदगी , कचरा ,
हजारों टन नदी रुख मोड़तीं।
खाते छिड़क कर जहर को,
फल,अन्न, सब्जी भी सभी।
रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
मरतीं मछलियाँ धार में,
बिंदी नहीं अनुस्वार में।
गाली जुबाँ पर सोहती,
जाए ये दुनिया भार में।।
नर नोंचता नर - माँस को,
कैसे बचे इज्जत तेरी!
रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
आकाश काला हो गया,
इस आदमी के खेल में।
उड़ रहा आकाश भू पर,
डीजल भरी इस रेल में।।
दूध में विष-बिंदु मिश्रित,
महिषी सु धेनु या छेरी।
रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
मन में भरी दुर्गंध है ,
फिर नाक का क्या दोष है!
मारे कुल्हाड़ी पैर में,
करता किसी पर रोष है??
अपने गले में झाँक कर,
तूने कभी गलती हेरी?
रचना करो मम शुद्ध वाणी ,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
चाँदनी रूठी हुई है ,
चाँद की मनुहार है।
शोर से रोती दिशाएँ,
शांति - उपसंहार है।।
सुबकती अमराइयों में ,
लाज लुटती है निरी।
रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
मूल्य चरते घास देखो,
पात्र औंधे मुँह पड़े।
माता पिता गुरु बंधु अग्रज,
अँगुली दबाए हैं खड़े।।
जलवायु कैसे शुद्ध हो ये,
कहता 'शुभम' बातें खरी।
रचना करो मम शुद्ध वाणी,
शुभ शब्दमय कविता मेरी।।
💐 शुभमस्तु !
04.06.2020◆7.15अपराह्न
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