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✍ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नेकी में क्या गफ़लत करना।
बिना विचारे भी मत करना।।
सबकी करनी अलग अलग है,
इतनी भी क्या जहमत करना।
खारों में भी गुल खिलते हैं,
मत खारों से नफ़रत करना।
बिच्छू की आदत है डंसना,
भले जनों की संगत करना।
पत्थर पिघल नहीं सकता है,
शीश पटक आफ़त मत करना।
कौन मानता है कहने से,
दुर्जन की मत आमद करना।
'शुभम'आज खुदगर्ज जमाना,
जानबूझ मत शामत करना।।
💐 शुभमस्तु !
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