रविवार, 28 जून 2020

मेरी बुरी बाल -आदतें [ संस्मरण]

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 ✍ लेखक© 
👨‍🎓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम
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      अभी तक मैं विद्यालय में पढ़ने नहीं जाता था। उस समय मेरी अवस्था लगभग 3-4 वर्ष की रही होगी। मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरी अम्मा चूल्हे पर भोजन बनाती थीं।उपले, लकड़ी, अरहर की लौद(फली पत्ती रहित झाड़) आदि से घर पर भोजन बनाया जाता था।होली की आग को एक जलते हुए उपले के माध्यम से प्रति वर्ष पर लाया जाता था और उसी से घर पर गुलरियों की आँगन के बीच रखी हुई होली तथा चूल्हे में आग रखने का श्रीगणेश किया जाता था। यह आग ही प्रतिदिन चूल्हे में आग सुलगाने के काम आती थी। माचिस का प्रयोग बहुत कम किया जाता था।
      सुबह का भोजन बन जाने के बाद माँ बनी हुई राख में एक उपला सुलगाकर गाढ़ देती थी। शाम को उसी को पुनः सुलगाकर खाना बना लिया जाता था।इस प्रकार वर्ष भर होली की उसी आग से भोजन बनता था।यदि कभी ऐसा नहीं हो पाता था , तो माचिस का प्रयोग भी किया जाता था।सब्जी लौकी , कद्दू आदि काटने के लिए घर में हँसिये और चाकू का उपयोग होता था। ये चाकू ,जिन्हें हम चक्कू कहते थे , बड़े उपयोगी होते थे।
      पिताजी घर पर कई चाकू ले आया करते थे। इन चाकुओं के हैंडिल लकड़ी के बने होते थे। आगे की ओर अधिक चौड़ा और पीछे की ओर चाकू का हैंडिल कम चौड़ा होता था। लोहे की धार वाला हिस्सा इसी हैंडिल को बीच में चीर कर एक खाँची में फिट हो जाता था। जरूरत पड़ने पर यहीं से उसे खोला जा सकता था।
          पता नहीं कैसे और कब से मुझे एक बुरी आदत पड़ गई। वह यह कि घर में जैसे ही मेरी नज़र चाकू पर पड़ी , मैं नज़र बचाकर उस चाकू को चूल्हे की उसी आग में गाढ़ देता था , जिसमें माँ कभी -कभी आलू ,शकरकंद , बैंगन आदि भुनने के लिए गाड़ दिया करती थी। बस ये ध्यान रखता था कि कोई देख न ले कि मैं चाकू को चूल्हे में गाड़ रहा हूँ। शाम को जब माँ भोजन बनाने के लिए आग जलाती तो चूल्हे में जले हुए हैंडल का चाकू निकलता । घर में कोई और छोटा बालक तो था नहीं , इसलिए मैं ही दादी बाबा , माता पिता, चाचा का लाड़ला था। सहज ही मेरी हरकत पकड़ में आ जाती। पर इतना अवश्य याद है कि कभी पिटाई नहीं हुई।हाँ, छोटी मोटी डाँट तो पड़ ही जाती थी। लेकिन दो तीन वर्ष तक मेरी यह कुटेब नहीं छूटी।कुछ और बड़ा होने पर मेरा यह 'चाकू जलाओ अभियान' स्वतः बन्द हो गया।क्योंकि अब मैं बड़ा हो गया था। याद नहीं कि उस समय मैंने कितने चाकू चूल्हे की आग में भून डाले। 
 💐 शुभमस्तु !

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