रविवार, 14 जून 2020

पर -विस्तार [ चौपाई ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©पर -विस्तार 
                   [ चौपाई  ]
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जब  पावस ऋतु  गई बुढ़ाई।
चींटी के  पर  निकले भाई।।1

दीपक    पर  रहता  दीवाना।
देखो  तो   प्रेमी   परवाना।।2

दीप - लपट में पर जल जाते।
परवाने  यों    प्रेम निभाते।।3

तुम    पर   ऐसा   नेह  हमारा।
परवाने  को  दीपक प्यारा।।4

पर  -उपकारी   जो   नर होई।
ता  पर  कृपा ईश की होई।।5

है  परदेश विषम दुख ख्वारी।
कौन सहायक विपदा भारी।6

पर  नारी  से   नेह   न करना।
 विष की बेल लिपट यों मरना

परबाबा     के   तुम अवतारी।
रखना कुल की कानि सँभारी

सब   नारी   भगिनी माता हैं।
पर पत्नी  संतति जाता है।।9

जाना   है  परलोक सभी को।
'शुभम'बनाओ अपने जी को।

सब  परसर्ग   बाद  में लगते।
शब्दों के वे अर्थ बदलते।।11

चले  तीर  पर  तीर   निरंतर।
भेद रहे दुश्मन के अंतर।।12

मत उड़ान बे-पर  की भरना।
मनगढ़ंत बातें मत करना।13

पर जमना विनाश के लक्षण।
सँभलो हे नर नारी तत्क्षण।।

पर -काया  प्रवेश जो करता।
बोलो नर वह कैसे मरता।15

है   परकीय   प्रेम अति घाती।
जले   दीप की बुझती बाती।।

परवर्ती    युग    कैसा  होगा।
बदलेगा नर पल पल चोगा।।

पर -धर्मी   से मोह न ममता ।
'शुभम'नहीं स्वधर्म से समता।
-----------------------
1.,3-पंख(फ़ारसी)
2,4- अधिकरण का चिह्न
5,6,7-अन्य 
8.-उपसर्ग
9.-किन्तु
10.-उस ओर के
11.-ठीक बाद का
12.निरंतर
13.सिर पैर
14.पंख 
15.,16-दूसरे
17.आगामी
18.दूसरा।
------------------------------
💐 शुभमस्तु !

06.06.2020 ◆ 10.45 पूर्वाह्न।
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जब  पावस ऋतु  गई बुढ़ाई।
चींटी के  पर  निकले भाई।।1

दीपक    पर  रहता  दीवाना।
देखो  तो   प्रेमी   परवाना।।2

दीप - लपट में पर जल जाते।
परवाने  यों    प्रेम निभाते।।3

तुम    पर   ऐसा   नेह  हमारा।
परवाने  को  दीपक प्यारा।।4

पर  -उपकारी   जो   नर होई।
ता  पर  कृपा ईश की होई।।5

है  परदेश विषम दुख ख्वारी।
कौन सहायक विपदा भारी।6

पर  नारी  से   नेह   न करना।
 विष की बेल लिपट यों मरना

परबाबा     के   तुम अवतारी।
रखना कुल की कानि सँभारी

सब   नारी   भगिनी माता हैं।
पर पत्नी  संतति जाता है।।9

जाना   है  परलोक सभी को।
'शुभम'बनाओ अपने जी को।

सब  परसर्ग   बाद  में लगते।
शब्दों के वे अर्थ बदलते।।11

चले  तीर  पर  तीर   निरंतर।
भेद रहे दुश्मन के अंतर।।12

मत उड़ान बे-पर  की भरना।
मनगढ़ंत बातें मत करना।13

पर जमना विनाश के लक्षण।
सँभलो हे नर नारी तत्क्षण।।

पर -काया  प्रवेश जो करता।
बोलो नर वह कैसे मरता।15

है   परकीय   प्रेम अति घाती।
जले   दीप की बुझती बाती।।

परवर्ती    युग    कैसा  होगा।
बदलेगा नर पल पल चोगा।।

पर -धर्मी   से मोह न ममता ।
'शुभम'नहीं स्वधर्म से समता।
-----------------------
1.,3-पंख(फ़ारसी)
2,4- अधिकरण का चिह्न
5,6,7-अन्य 
8.-उपसर्ग
9.-किन्तु
10.-उस ओर के
11.-ठीक बाद का
12.निरंतर
13.सिर पैर
14.पंख 
15.,16-दूसरे
17.आगामी
18.दूसरा।
------------------------------
💐 शुभमस्तु !

06.06.2020 ◆ 10.45 पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...